श्रद्धालुओं के लिए कार्तिक पूर्णिमा बहुत महत्वपूर्ण दिवस है। इस दिन गंगा स्नान तथा
सायंकाल दीप दान का विशेष महत्व हैं, इसी दिन भगवान् विष्णु ने मत्स्यावतार ग्रहण किया
था। इसी दिन संगम पर गज और ग्राह का युद्ध हुआ था। गज की करूणामयी पुकार
सुनकर विष्णु ने ग्राह का संहार कर गज की रक्षा की थी। इसी दिन भगवान् शंकर ने
त्रिपुर नामक राक्षस को भस्म किया था। इसी दिन शिव के प्रकाश स्तंभ के प्रसाद से
दुर्गारूपिणी पार्वती, महिषासुर का वध करने हेतु शक्ति अर्जित कर सकी थीं। इसी दिन
लोग गंगा स्नान करके पुन की भागी बनते है।
पूजा-विधान: कार्तिक पूर्णिमा को प्रातः काल गंगा स्नान करके विधि-विधान पूर्वक श्री सत्यनारायण भगवान् की कथा सुनी जाती है। सांयकाल देव-मंदिरों, चैराहों, गलियों, पीपल
के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलायें जाते हैं और गंगाजी के जल में
दीपदान किये जाते हैं। इस तिथि में ब्राह्मणों को दान देने, भोजन कराने, गरीबों को भिक्षा
देने तथा बुर्जुगों से आशीर्वाद प्राप्त करने का विधान है।
कथा : एक बार त्रिपुर राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया। इस
तप के प्रभाव से सब चराचर और देवता भयभीत हो उठे। अंत में सभी देवताओं ने
मिलकर एक योजना बनाई कि अप्सराओं को भेजकर उसका तप भंग करवा दिया जाए।
पर उन्हें सफलता न मिल सकी। यह देख आखिर में ब्रह्माजी स्वयं उसके पास गए, और
उससे वर मांगने के लिए कहा। उसने मनुष्य तथा देवता द्वारा न मारे जाने का वरदान
मांग लिया। ब्रह्मा जी के इस वरदान से त्रिपुर तीनों लोकों में निर्भय होकर अघोर
अत्याचार करने लगा। देवताओं के षड्यंत्र ये एक बार उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई कर
दी। शिव और त्रिपुर में भंयकर युद्ध हुआ। अंत में भगवान् शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की
सहायता से उसका वध किया।