भगवती माँ दुर्गा अपने पहले स्वरुप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं ! पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका शैलपुत्री नाम पड़ा था! वृषभ – स्थिता इन माता जी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं ! यही नव दुर्गों में प्रथम दुर्गा हैं ! अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थी ! तब इनका नाम ‘सती’ था ! इनका विवाह भगवन शंकर जी से हुआ था! एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विसाल यज्ञ का आयोजन किया ! इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवी देवताओं को अपना -२ यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया ! किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया ! सती ने जब ये सुना की उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं , तब वहां जाने के लिए उनका मन व्याकुल हो उठा ! पानी यह इक्षा उन्होंने शंकर जी को बताई ! सारी बातो पर विचार करने के बाद शंकर जी ने कहा – प्रजापति दक्ष किसी कारण वश हमसे नाराज हैं ! अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवी देवताओं को आमंत्रित किया हैं! उनके यज्ञ भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं , किन्तु हमे जान बूझ कर नहीं बुलाया हैं ! कोई सूचना तक नहीं भेजी हैं ! ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा ! शंकर जी के इस कथन से भी सती को प्रबोध नहीं हुआ ! पिता का यज्ञ देखने , वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की व्याकुलता किसी प्रकार भी कम न हो सकी ! उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान् शंकर जी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी ! सती ने पिता के घर पहुँच कर देखा की कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा ! केवल उनकी माँ ने स्नेह से उन्हें गले लगाया ! परिजनों के इस व्यवहार से उन्हें बहुत दुःख पंहुचा ! प्रजापति दक्ष ने भगवान् शंकर के प्रति अपमानजनक वचन भी कहे तथा भगवान् शंकर जी के लिए उनके ह्रदय में तिरस्कार का भाव भी भरा था! यह सब देखकर सती का ह्रदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा ! उन्होंने सोचा भगवान् शंकर जी की बात न मान यहाँ आकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की हैं ! वह अपने पति भगवान् शंकर के इस अपमान को सहन न कर सकी ! उन्होंने अपने इस रूप को तत्क्षर वहीँ यागाग्नी में जला कर भस्म कर दिया ! वज्रपात के समान इस दारुण – दुखद घटना को सुनकर भगवान् शंकर ने क्रुद्ध होकर अपने गणों को भेज कर दक्ष के यज्ञ को पूर्णतया विध्वंश करा दिया ! सती ने योगाग्नी द्वारा शरीर को भष्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया ! इस बार वह ‘शैलपुत्री ‘ नाम से विख्यात हुई ! पार्वती तथा हेमवती भी उन्ही के नाम हैं ! ‘ शैलपुत्री ‘ देवी का विवाह भी भगवान् शंकर जी से हुआ ! नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं ! नवरात्री पूजन में प्रथम दिवस में इन्ही की पूजा और उपासना की जाती हैं ! माता शैलपुत्री को नमन !