मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है अर्थात सूर्य के
उत्तरायण होने को मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति हिन्दुओं का बड़ा दिन माना गया है ।
सामान्यतया यह दिन प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को पड़ता है। यह पर्व शीत ऋतु के जाने तथा बंसत
ऋतु के आगमन का प्रतीक है । मकर संक्रांति भगवान सूर्य की उपासना और स्नान दान का पर्व भी
मानते हैं ।
इस दिन माता यशोदा ने श्री कृष्ण के जन्म के लिए यह व्रत रखा था । उसी दिन से मकर संक्रांति के
व्रत का चलन है। वर्णित है कि सूर्य के मकर राशि प्रवेश होने से मृत्यु को प्राप्त व्यक्तिकी, आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है । महाभारत काल में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने गंगा के तट पर
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का 26 दिनों तक इंतजार किया था।
श्रीपद्म पुराण में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला और
पाप नाशक होता है । इसलिए तिल, गुड़ के व्यंजन, ऊनी वस्त्र, कम्बल, काले तिल आदि दान करने
की परम्परा है । ब्रह्मांड पुराण के अनुसार यशोदा ने पान दान करके तेजस्वी पुत्र श्री कृष्ण को प्राप्त किया। शास्त्रों में ऐसा भी वर्णन मिलता है कि इस दिन किया गया दान पुनर्जन्म होने पर सौ गुणा होकर प्राप्त होता है । मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है, जिसमें तिल का प्रयोग शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन हर बारहवें वर्ष प्रयाग, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में कुंभ का मेला लगता है, जहाँ समुंद्र मंथन से प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें गिरी थी ।
यह भी माना गया है कि इस पर्व के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्यों को ग्रहण करने के लिए देवतागण
धरती पर अवतरित होते हैं । कहीं-कहीं इस दिन काले कपड़े पहनने का भी रिवाज है । इसी दिन
अनेक प्रदेशों में महिलाएँ हल्दी, कुमकुम की रस्म भी करती हैं । शास्त्रों में इस पर्व पर गंगा के जल में स्नान करने का बड़ा महत्व बताया गया है ।
पूजा विधि: इसका व्रत रखने के लिए एक दिन पूर्व एक समय भोजन करें । प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल नित्य क्रम से निपटकर तिल का उबटन लगा कर स्नान करने का विधान है । फिर तांबे के
पात्र से सूर्य को मंत्रोच्चारण कर जल चढ़ाएं । इस पर्व की पूजन पद्धति में शीत के प्रकोप से छुटकारा
पाने के लिए तिल को महत्व दिया गया है । तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल
के पकवान भोजन के रूप में खाना, काले तिल का दान करना जैसे सारे कार्य इसीलिए किए जाते हैं ।
इस दिन लोग नदियों में स्नान करते हैं और मंदिर जाते हंै । गंगा के जल में स्नान करने को मिल
जाए तो भारी पुण्य मिलता है । इस पर्व पर तिल का दान, शुद्ध घी, कम्बल , ऊनी वस्त्र बांटने का
विधान है । यह पुण्य कार्य माना जाता है । कुछ प्रदेशों में कहीं-कहीं इस दिन खिचड़ी खाने का भी
विधान है तथा तिल का बना हुआ तिलवा खाने का विधान है। गरीबों और ब्राह्मणों को खिचड़ी और
तिलवा दान में देनी चाहिए।
कार्य जो हर व्यक्ति को मकर संक्रान्ति के दिन करने चाहिए :
1. तिल के तेल की शरीर पर मालिश
तिल के तेल से अपने शरीर पर मालिश करें। इस तेल से मालिश करने से शरीर में एक गजब की स्फूर्ति
आती है।
2. तिल का उबटन
तिल का उबटन लगायें । तिल के पदार्थों से बदन पर लेप करने से सुंदरता बढ़ती है। तथा व्यक्ति में निखार
आता है ।
3. तिलयुक्त जल से स्नान
प्रातः काल स्नान के जल में तिल मिलाकर स्नान करें ।
4. तिल का हवन
इस दिन तिल का हवन करें । हवन सामग्री में भी सबसे अधिक मात्रा में तिलों को ही शामिल किया गया है ।
विष्णु ही सूर्य है तथा पृथ्वी है और इन दोनों के संयोग से तिल वायु ग्रहण करके अथार्त शनि के विशेष तेज
को ग्रहण करके परिपाक को प्राप्त होता है । जिसके घर में सुख-संपदा तथा श्री की प्राप्ति होती है और
ऐश्वर्य जीवन भर बना रहता है ।
5. तिल युक्त भोजन
तिल के व्यजंन खायें । जैसे तिल के लड्डू, गजग, रेवड़ी, खिचड़ी बनाकर खायें । इन पदार्थों को खाने से
भगवान सूर्य बड़े प्रसन्न होते हैं । संक्रान्ति पर तिल, गुड़ से बनी खाद्य सामग्री के सेवन का विशेष इन दिनों
हमारी पाचन शक्ति अधिक उद्दीप्त एवं तीव्र हो जाती है, अतः तिल - गुड़ संबंधी पदार्थोंं का सेवन
शारीरिक पुष्टि एवं शक्ति से मनोरंजन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है ।
6. तिल मिश्रित जल का पान
पीने के पानी में तिल डाल कर रखें और सारा दिन इसी पानी को पीते रहें ।