श्री सूतजी बोले, ‘हे ऋषि-मुनियों! मैं और भी कथा सुनाता हूँ। कौशलपुर में एक राजा था-तुंगध्वज।
प्रजा उसकी छत्रछाया में आनन्दपूर्वक रह रही थी। राजा तुंगध्वज अपनी प्रजा के सुख-दुख का बहुत
ध्यान रखता था। लेकिन एक बार उसने भी श्री सत्यनारायण भगवान् का प्रसाद ग्रहण नहीं किया। तब
सभी को चिन्ताओं से मुक्त करके, धन-सम्पत्ति से भण्डार भरकर प्राणियों को जीवन के सभी सुख देने
वाले श्री सत्यनारायण भगवान् ने राजा को प्रसाद ग्रहण न करने का दण्ड दिया।
एक दिन राजा तुंगध्वज जंगल में हिंसक पशुओं का शिकार करने निकला था। तेजी से घोड़ा दौड़ाकर
शिकार का पीछा करते हुए वह अपने सैनिको से अलग हो गया और देर तक हिंसक जानवरों का
शिकार किया। अतः कुछ देर विश्राम करने की इच्छा से वह एक बड़े वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गया।
समीप ही कुछ चरवाहें श्री सत्यनारायण भगवान् की पूजा कर रहे थे। राजा ने उनके पास से गुजरते
हुए सत्यनारायण भगवान् को नमस्कार नहीं किया। चरवाहों ने राजा को पूजा के बाद प्रसाद दिया, तो
राजा ने उन्हें छोटे लोग समझकर प्रसाद ग्रहण नहीं किया और घोड़े पर सवार हो अपने नगर की ओर
चल दिया। राजा जब नगर में पहुँचा तो देखा कि उसका सारा वैभव तथा धन-सम्पत्ति आदि नष्ट हो
गया है। श्री सत्यनारायण के प्रकोप से राजा निर्धन हो गया। तब राजज्योतिषी ने राजा से कहा,
‘महाराज! आपसे अवश्य ही कोई भूल हुई है। अगर आप उस भूल का प्रायश्चित कर लें तो सब कुछ
पहले जैसा हो जाएगा।’ राजा को तुरन्त अपनी भूल का स्मरण हो आया। अतः मंदिर में जाकर राजा
ने श्री सत्यनारायण भगवान् से क्षमा मांगी और उनकी पूजा की। पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करने से श्री
सत्यनारायण भगवान् की अनुकम्पा से चमत्कार हुआ। राजा का खोया वैभव पुनः लौट आया। श्री
सत्यनारायण भगवान् की अनुकम्पा से जीवन के सभी सुखों का भोग करते हुए अंत में राजा तुंगध्वज
वैकुण्ठ धाम को गया और मोक्ष को प्राप्त किया।
श्री सत्यनारायण भगवान् के व्रत-पूजा को जो भी मनुष्य करता है, उसके सभी दुख, चिन्ताएं नष्ट होती
हैं उसके घर में धन-धान्य के भण्डार भरे रहते हैं। निस्संतानों को सन्तान की प्राप्ति होती है और सभी
मनोकामनाओं को प्राप्त कर मनुष्य अंत में मोक्ष को प्राप्त कर सीधे वैकुण्ठ धाम को जाता है।
श्री सूतजी ने कुछ पल रुककर कहा, ‘हे श्रेष्ठ मुनियों! श्री सत्यनारायण भगवान् के व्रत को पूर्व जन्म में
जिन लोगों ने किया उन्हें दूसरे जन्म में भी सभी तरह के सुख प्राप्त हुए। वृद्ध शतानंद ब्राह्मण ने
पूर्वजन्म में सत्यनारायण का विधिवत व्रत किया, तो दूसरे जन्म में सुदामा के रूप में भगवान् की पूजा
करते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को चला गया। उल्कामुख राजा अगले जन्म में राजा
दशरथ के रूप में मोक्ष को प्राप्त करके वैकुण्ठ को गए। वयापारी ने मोरध्वज के रूप में जन्म लिया
और अपने पुत्र को आरे से चीरकर भगवान् की अनुकम्पा से वैकुण्ठ को प्राप्त किया। राजा तुंगध्वज
अगले जन्म में मनु के रूप में जन्म लेकर भगवान् का पूजा-पाठ करते हुए, लोकप्रिय होकर सद्कर्म
करते हुए मोक्ष को प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को चले गए। हे ऋषि-मुनियों! श्री सत्यनारायण भगवान् का
व्रत और पूजा मनुष्य को सभी चिन्ताओं से मुक्त करके, धन-सम्पत्ति के भण्डार भरकर अंत में
जन्म-जन्मान्तर के चक्रव्यूह से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करता है।’
।। इति श्री सत्यनारायण व्रतकथा।।
जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा। सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा।।
रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे। नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे।।
प्रगट भए कलि कारण द्विज को दर्श दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो।।
दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपत्ति हरी।।
वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी। सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी।।
भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो। श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो।।
ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी। मन वाछिंत फल दीन्हा दीनदयाल हरी।।
चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल मेवा। धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा।।
श्री सत्यनारायण की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।।