श्रमिक वर्ग जो निर्माण कार्य में लगा रहता है। वह भारतीय परम्पराओं में सर्वहरा मजदूर नहीं है अपितु देवताओं की सन्तान है क्योंकि निर्माण कार्य वही कर सकता है जिसके अन्दर दैवीगुण विद्यामान हो। इसलिए विश्वकर्मा को देवताओं द्वारा वन्दित कहा गया है। विश्वकर्मा भारतीय देवमाला में सभी शिल्प विद्याओं के अधिदेवता है। सभी शिल्पी और श्रमिक अपने कार्य की उन्नति के लिए उनकी आराधना करते हैं और पूजा दिवस पर शिल्प का कोई भी उपकरण काम में नही लाया जाता।
ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त से चौदह ऋचाएं हैं। कोई भी निर्माण कार्य करते समय विश्वकर्मा सूक्त का पढ़ा जाना अनिवार्य माना जाता है। स्कन्द पुराण में ऐसा उल्लेख आता है। कि जगत के स्रष्टा ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा कि सृष्टि का निर्माण करने के लिए मैं ही विश्वकर्मा के रूप में अवरित होता हूं । विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए अनेकों सुन्दर भवन बनाए। लंका की स्वर्ण नगरी और द्वारका निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। पर्वत राज हिमालय की पुत्री पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी वे भी विश्वकर्मा ने ही की थी जिनको देखकर सभी देवता चकित हो गए थे। देवताओं के समस्त विमान भी विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं । भगवान जगन्नाथ जी का विग्रह भी इन्होंने ही निर्माण किया था और आज तक उसी की आवृति होती है उसको कोई बदल नहीं पाया। विश्वकर्मा का दूसरा नाम त्वष्टा भी है और त्वष्टी उनकी पुत्री थी जो संज्ञा नाम से विख्यात है। विश्वकर्मा ने इन्द्र को नष्ट करने के लिए एक यज्ञ किया जिससे इनका अति बलवान पुत्र वृत्र उत्पन्न हुआ, देवता भी उससे भयभीत रहते थे देवताओं को दुःखी देखकर विष्णु ने सब देवताओं को परास्त किया। महाभारत के सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व में विश्वकर्मा की महिमा का विशद वर्णन किया गया है। कथा सरितसागर में असुरों के वास्तुविद् मय को भी विश्वकर्मा का पुत्र बताया गया है। समुद्र पर सेतु बनाने के लिए भगवान राम ने विश्वकर्मा की पूजा की थी- अयं सौम्य नलो नाम तनयो विश्वकर्मणः 1:1 पित्रा दत्तवर: श्रीमान् प्रीतिमान् विश्वकर्मणः॥
(वा.रा.युद्ध काण्ड सर्ग 22 श्लोक 45) तब आकाशवाणी हुई कि हे प्रभु आप चिन्तित क्यों हैं? आपकी सेना में विलक्षण कान्ति वाले विश्वकर्मा नन्दन महात्मा नल हैं जो समस्त ज्ञान-विज्ञान में प्रवीण हैं और आपकी आज्ञा पाते ही सेना को उस पार उतारने के लिए सेतु का निर्माण कर सकते हैं अर्थात जहां कहीं भी कोई निर्माण का कार्य होता है वह विश्वकर्मा की कृपा से होता है।
आदित्य पुराण के अनुसार अष्टवसुओं में से एक प्रभास नामक वसु के पुत्र और महर्षि धर्म के पौत्र थे। बृहस्पति महाराज की बहन वरस्त्री महर्षि प्रभास की भार्या हुई उन्हीं के गर्भ से विश्वकर्मा का जन्म हुआ जिन्हें हम वसु पुत्र विश्वकर्मा कहते हैं। धर्म ग्रंथ और ज्योतिषाचार्यों के प्रमाण अनुसार विशेषकर स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में दिए हुए वर्णन अनुसार इन्द्र-कील पर्वत पर माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ। परन्तु लोक परम्पराओं में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को हरियाणा, पंजाब और दिल्ली में (दीवाली की महारात्री से अगले दिन) विश्वकर्मा जी की आराधना की जाती है । देश के अन्य भागों में उनकी पूजा माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही होती है। विश्वकर्मा जी की पुत्री संज्ञा का विवाह भगवान सूर्य के साथ हुआ था वह सूर्य पत्नी कहलाती है। उनके दो पुत्र विश्वरूप और वृत्र हुए जो बहुत बलशाली थे वृत्र के नाम से तो देवराज इन्द्र भी कांपता था इसलिए इन्द्र ने घोर तपस्या करके वृत्र का नाश करने के लिए दधीचि ऋषि से अस्थियां मांगी थी। आश्वलायन सूत्र में ऐसा उल्लेख मिलता है कि विश्वकर्मा अंगिरा के कुल में उत्पन्न हुए थे और उनका गोत्र आंगिरस है । इस सूत्र में कहा गया है कि विश्वकर्मा सभी शिल्पों के कर्ता हैं। कोई भी शिल्पकार लकड़ी आदि पदार्थ से जब किसी भी चीज 1. की रचना करता है तो वास्तव में विश्वकर्मा की ही पूजा कर रहा होता है । जो लोग अपने कार्य को सफलतापूर्वक करना चाहते हैं उन्हें देव विश्वकर्मा की उपासना करनी चाहिए। वायु पुराण के उत्तर भाग में भी विश्वकर्मा को कलाधिपति कहकर उनकी बारम्बार आराधना की गई है जिनको समस्त कलाओं के ज्ञाता और समस्त शिल्प कला में पारंगत कहा गया है।