इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड व चने रखे, सुनने वाला सन्तोषी माता की जय । सन्तोषी माता की जय । इस प्रकार जय-जयकार मुख से बोलते जायें । कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड चना गौ माता को खिलावें । कलश में रखा हुआ गुड चना सबको प्रसाद के रूप में बाटँ दे, कथा से पहले कलश को जल सें भरें उसके ऊपर गुड चने से भरा कटोरा रखे, कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के पानी को घर में सब जगहों पर छिडकें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल देवें। सवा रूपये का गुड़ चना लेकर माता का व्रत करें । गुड़ घर में हो तो लेवें । विचार न करें क्योंकि माता भावना की भूखी है कम ज्यादा का कोई विचार नहीं इसलिए जितना भी बन पड़े अपर्ण करें , श्रद्वा और प्रेम से प्रसन्न मन हो व्रत करना चाहिए । व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खजा मोमनदार पूर्वा, खीर, चने का शाक, नैवे़द्य रखे, घी का दीपक जला सन्तोषी माता की जय-जयकार नारियल फोडे । इस दिन घर में कोई खटाई न खावे और न किसी को खाने को दे । इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें, देवर जेठ के लड़के मिलते हों तो दूसरों को न बुलाना । कुटुम्ब में न मिलें तो ब्राह्मणों के रिश्तेदारों के या पड़ौसियों के लड़के बुलावें । उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दें तथा भोजन करा कर यथाशक्ति दक्षिणा देवे, नगद पैसे न दे, कोई वस्तु दक्षिणा में दे, व्रत करने वाला कथा सुन प्रसाद ले एक समय भेाजन करें, इस तरह से माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होकर मनोकामना पूरी होगी ।