यह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है । वास्तव में महाशिवरात्रि त्रयोदशी की रात को मानी जाती है, लेकिन सुविधा के अनुसार चतुर्दशी को मनाई जाती है । त्रयोदशी को एक बार भोजन करके चतुर्दशी के दिन निराहार उपवास रख कर इसका व्रत शुरू करें । इस दिन प्रातःकाल दैनिक कार्यों से निपटकर काले तिलों का उबटन लगाकर स्नान करें । फिर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके मास पक्ष तिथि का उल्लेख करते हुए कहें कि, ‘‘पापों के नाश के लिए, भोगों की प्राप्ति हेतु तथा अक्षय मोक्ष प्राप्ति के लिए मैं महाशिवरात्रि के व्रत का संकल्प लेता हूँ ’’, इसके पश्चात् भोले शंकर का पूजन, गणेश, पार्वती, नंदी के साथ उनकी प्रिय चीजें जैसे आक व धतूरे के पुष्प, बेलपत्र, देवा, कनेर, मौलसिरी, तुलसी दल आदि के साथ षोडशोपचार द्वारा विधि विधान से करें । इस दिन शिवजी पर पके आम्रफल चढ़ाना अधिक फलदायी होता है । स्मरण रहें कि शिवलिंग पर चढा़ए गए पुष्प, फल तथा दूध आदि के नैवेद्य को ग्रहण नहीं करना चाहिए। भगवान् शिव की मूर्ति के पास शालग्राम की मूर्ति रखना अनिवार्य बताया गया है । यदि शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम हो तो नैवेद्य खाने का दोष नहीं लगता । पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन और दान की भी परंपरा है । भक्त इस पावन पर्व पर शिव स्त्रोत, रूद्राष्टाध्यायी, शिवपुराण की कथा, शिव चालीसा का पाठ भी करते हैं । रात्रि जागरण का विधान पूरा करने के लिए भक्तगण भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं । इसके पश्चात दूसरे दिन प्रातःकाल योग्य ब्राह्मणों द्वारा हवन और रूद्राभिषेक वहीं करावें अन्यथा घर पर पार्थिव बनाकर एकादश पाठ या 101 पाठ वैदिक ब्राह्मणों से करावें ।