मैं सर्वज्ञ भगवान भैरव की गोद में रहने वाली परम श्रेष्ठ पद्मावती देवी का ध्यान करता (करती) हूँ। वे नागराज के आसन पर बैठी हैं और नागों के फणों में जड़ी मणियों की चमक से उनका शरीर चमक रहा है। उनका तेज सूर्य के समान है, उनके तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। वे अपने हाथों में माला, कलश, खोपड़ी और कमल लिए हुए हैं, और उनके सिर पर अर्धचंद्र का मुकुट शोभित हो रहा है।
ऋषि कहते हैं देवी का यह कथन सुनकर दूत ने दैत्यराज को सब विस्तार से बताया। यह सुनकर दैत्यराज क्रोधित हो उठा और धूम्रलोचन से बोला, 'धूम्रलोचन! अपनी सेना लेकर जाओ और उस स्त्री को केश पकड़कर घसीटते हुए यहाँ लाओ। अगर उसकी रक्षा के लिए कोई खड़ा हो, चाहे वह देवता, यक्ष या गंधर्व हो, उसे मार डालो।'
ऋषि कहते हैं शुम्भ के आदेश पर धूम्रलोचन साठ हजार असुरों की सेना लेकर तुरंत चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर उसने हिमालय पर रहने वाली देवी को देखा और ललकारते हुए कहा, अरी! तू शुम्भ-निशुम्भ के पास चल। अगर खुशी से नहीं आएगी, तो मैं तुझे बलपूर्वक घसीटकर ले जाऊँगा।
देवी बोलीं - तुम्हें दैत्यराज ने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है; ऐसी स्थिति में यदि तुम मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो मैं क्या कर सकती हूँ?
ऋषि कहते हैं जब देवी ने यह कहा तो असुर धूम्रलोचन उनकी ओर दौड़ा, परन्तु अम्बिका ने केवल 'हुं' शब्द का उच्चारण किया और वह तुरंत भस्म हो गया। इसके बाद देवी और दैत्यों की विशाल सेना के बीच तीखे सायकों, शक्तियों और फरसों की वर्षा शुरू हो गई। देवी के वाहन सिंह ने क्रोध में भरकर भयंकर गर्जना की और दैत्यों की सेना में कूद पड़ा। उसने अपने पंजों, जबड़ों और दांतों से असंख्य दैत्यों का वध कर डाला। सिंह ने क्षणभर में ही पूरी सेना का संहार कर दिया।।
शुम्भ को जब यह समाचार मिला कि धूम्रलोचन मारा गया और उसकी सेना का सफाया हो गया, तो वह क्रोध से भर गया। उसके ओठ काँपने लगे और उसने चण्ड और मुण्ड नामक दो महादैत्यों को आदेश दिया, "तुम बड़ी सेना लेकर जाओ और देवी को पकड़कर यहाँ ले आओ। यदि संभव न हो तो युद्ध करके उसे मार डालो और उसके साथ उसके सिंह को भी समाप्त कर दो। फिर उसे बाँधकर मेरे पास लाओ।