शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। ये गीध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमशः धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते है।
शनि भगवान् सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण में इनकी कथा इस प्रकार आयी है- बचपन से ही शनि देवता भगवान् श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होन पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु-स्नान करके पुत्र- प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुँची, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाय और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाय। शनि ग्रह जब रोहिणी का भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जायेगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़प कर मर जायगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिये महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मण्डल में पहुँचे। पहले तो महाराज दशरथ ने शनि देवता को नित्य की भाँति प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने के लिए कहा। महाराज दशरथ ने वर माँगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट-भेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया।
शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है।