बुधवार के व्रत की कथा


एक बार एक मनुष्य अपने ससुराल गया , कुछ दिन वहां रूक कर उसने अपने नगर को लौटने के लिए विदा माँगी । उस व्यकित के सास ससुर ने उसे बहुत समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है । लेकिन वह व्यक्ति नही माना । विवश होकर उन्हंे अपने जामाता और पुत्री को विदा करना पड़ा । पति-पत्नी बैल गाड़ी में चले जा रहे थे । एक नगर के बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी । पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया । पानी लेकर जब वह लौटा तो उसके क्रोध और आश्चर्य की सीमा न रही, क्योंकि उसकी पत्नी किसी अन्य पुरूष के लाये लोटे में से पानी पीकर हँस - हँसकर बात कर रही थी गुस्से में आग बबूला होकर वह उस आदमी से झगड़ा करने लगा । मगर यह देखकर उसके आश्चर्य की सीमा न रही कि उस परूष की शक्ल हूबहू मिलती थी ।

हम शक्ल व्यकितयों को झगड़ते हुए जब काफी देर हो गई तो वहाँ आने जाने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई, सिपाही भी आ गया । सिपाही ने स्त्री से पूछा की इन दोनों में से कौन सा तेरा पति है, तो वह बेचारी अंसमजस में पड़ गई ।

क्योकि दोनों की शक्ल एक दूसरे से बिल्कुल मिलती थी । बीच राह मे अपनी पत्नी को लुटा देखकर उस व्यक्ति की आँख भर आयी । वह शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा, कि हे भगवान आप मेरी रक्षा करो । मुझसे बड़ी भूल हुई जो मैं बुधवार को पत्नी को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा अपराध कभी नहीं करूँगा ।

उसकी वह प्रार्थना जैसे ही पूरी हुई कि दूसरा व्यक्ति अन्र्तध्यान हो गया और वह व्यक्ति सकुशल अपनी पत्नी के साथ अपने घर पहुँच गया । उस दिन के बाद से पति-पत्नी नियम पुर्वक बुधवार को व्रत रखने लगे ।

इस कथा को जो सुनता और कहता है। उसको बुधवार के दिन यात्रा करने पर भी कोई दोष नहीं लगता है और वह सुख शांति तथा समृद्धि को प्राप्त करता है ।


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